THE FACT ABOUT SHABAR MANTRA THAT NO ONE IS SUGGESTING

The Fact About shabar mantra That No One Is Suggesting

The Fact About shabar mantra That No One Is Suggesting

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भगवान् शंकर ने अपने दिव्य चक्षुओं से देखा कि इस मत्स्य के गर्भ में जगत् पिता ब्रह्मा का अंश विराजमान है और इस पर भगवान् शंकर ने गर्भ स्थित उस शिशु को तत्त्व चिंतन का आशीर्वाद व आदेश दिया तथा यह भी आशीर्वाद दिया कि उनकी दीक्षा त्रिदेवों के अवतार तंत्र-मंत्र में महासिद्ध गुरु दत्तात्रेय भगवान् से होगी ।

जहां वैदिक व अन्य मंत्रों की भाषा शिष्ट, सभ्य व सुसंस्कृत होती हैं वहीं शाबर-मंत्रों में एक प्रकार की गाली गलौच या भद्दी भाषा का इस्तेमाल होता है तथा साधक अपने आराध्य देव को बड़ी से बड़ी सौगन्ध देता है कि मेरे इस कार्य को हर हाल में करो। एक शिष्ट व सज्जन व्यक्ति अपने पूज्य व आराध्य देव के प्रति ऐसी भावना भी नहीं रख सकता वैसे इन मंत्रों को जानने वाले बेझिझक बोल जाते हैं यथा-उठ रे हनुमान जति, मेरा यह काम नहीं करे तो माता अंजनी का दूध हराम। सति की सेज पर पांव धरे। महादेव की जटा पर घाव करे, मेमदा पीर थी आन। सुलेमान पैगम्बर की दुहाई। पार्वती की चूड़ी चूके, सूलेमान पीर की पूजा पांव ठेली, गुरु गोरखनाथ लाजे वगैरह-वगैरह।

Mainly because our needs and desires is going to be fulfilled, we could have regard and prosperity wherever we're in life.



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With roots from the local rural languages of India, the Shabar Mantras Mix the normal yoga language of Sanskrit Using the vernacular tongues, building them accessible to a broader viewers.

वही गर्भस्थ बालक आगे चलकर मत्स्येन्द्रनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। मत्स्य के गर्भ से जन्म होने के कारण इनका नाम मत्स्येन्द्रनाथ पड़ा।

ॐ ह्रीं श्रीं गोम, गोरक्ष हम फट स्वाहाः

“ॐ ह्रीं श्रीं गोम गोरक्ष, निरंजनात्मने हम फट स्वाहाः”: The final Section of the mantra consists of the phrase “निरंजनात्मने” which signifies the ‘unblemished soul’, referring on the website pure spiritual essence of Gorakhnath.

Shabar Mantras will also be impressive equipment in overcoming obstructions and problems, clearing The trail towards achieving just one’s objectives.

शाबर-मंत्र में विनियोग, न्यास, छन्द, ऋषि वगैरह नहीं होते।

शाबर मंत्रों में साधक को स्वयं की साधना, भक्ति पर स्वाभिमान विशेष होता है। जिसको साधक गुरु की शक्ति के साथ जोड़ देता है तथा गुरुकृपा का पद-पद पर सहारा लेता है।



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